शंकर भगवान की तीसरी आंख इसलिए बंद रहती है, क्योकि भगवान शिव को संहार का देवता माना जाता है।
समुंद्र मंथन के दौरान निकले हुए विष को पी लेने की वजह से भगवान शिव का शरीर नीला पड़ गया था। तब से इनको नीलकंठ के नाम से भी जाना जाने लगा।
भगवान शिव अनादि है, अनादि का अर्थ होता है, जो हमेशा से था ,हमेशा है और हमेशा से रहेगा। इसीलिए भगवान शिव का कोई माता-पिता नही है।
कथक, भरतनाट्यम करते वक्त भगवान शिव की जो मूर्ति रखी जाती है उसे नटराज कहते है।
शिव लिंग टूट जाने पर उसकी पूजा की जाती है, लेकिन बाकी किसी और देवी -देवता की टूटी हुई मूर्ति की पूजा नही की जाती है।
शंकर भगवान और माता पार्वती की जिस दिन शादी हुई थी , उस दिन को शिवरात्रि के रूप में मनाते है।
भगवान शिव की एक बहन भी थी अमावरी, जिसे माता पार्वती की जिद्द पर खुद हर हर महादेव ने अपनी माया से बनाया था।
भगवान शंकर पर कभी भी केतकी का फूल नही चढ़ाया जाता, क्योंकि यह ब्रह्मा जी के झूठ का गवाह बना था।
भगवान शिव ने गणेश जी का सिर इसलिए काटा था , क्योकि भगवान शिव को माता पार्वती से मिलने नही दिया था।
भोले बाबा ने तांडव करने के बाद सनकादि के लिए चौदह बार डमरू बजाया था. जिससे माहेश्वर सूत्र यानि संस्कृत व्याकरण का आधार प्रकट हुआ था। शिवलिंग पर कभी भी बिना पानी के बेलपत्र नही चढ़ाया जाता है।
शिवलिंग के साथ -साथ शंकर भगवान पर भी शंख से जल नही चढ़ाया जाता है। क्योकि शंकर भगवान ने अपने त्रिशूल से शंखचूड़ को भस्म कर दिया था। और शंखचूड़ की हड्डियों से ही शंख बना था।
शंकर भगवान के गले मे लिपटे हुए सांप का नाम वासुकि है। यह सांप शेषनाग के बाद नागों का दूसरा राजा था।
भगवान शिव की जटाओं में रहने का वरदान चंद्रमा को मिला हुआ है।