सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा के किनारे तक और पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान समुद्र तट से लेकर उत्तर पूर्व में मेरठ तक था.
सिंधु सभ्यता का क्षेत्रफल 12,99,600 वर्ग किलोमीटर तथा अकार त्रिभुजाकार था.
हड़प्पा सभ्यता को भारतीय उपमहाद्वीप की प्रथम नगरीय सभ्यता माना जाता है.
हड़प्पा सभ्यता के प्रथम अवशेष हड़प्पा नामक स्थान से प्राप्त हुए थे. हड़प्पा नामक स्थान से प्राप्त अवशेषों के कारण ही इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता कहा गया.
हड़प्पा सभ्यता 2500 ईसा पूर्व से 1500 ईसा पूर्व तक फली फूली.हड़प्पा सभ्यता की तिथि ज्ञात करने के लिए कार्बन डेटिंग पद्धति का सहारा लिया गया.
हड़प्पा सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता का नाम इसके प्रमुख नगर मोहनजोदड़ो की खुदाई के कारण मिला. क्योंकि मोहनजोदड़ो की खुदाई सिंधु नदी के किनारे हुई थी. इसी सिंधु नदी के कारण इसे सिंधु घाटी सभ्यता कहा जाने लगा.
सिंधु सभ्यता मिस्त्र सभ्यता से भी बड़ी सभ्यता थी
सिंधु घाटी सभ्यता को कांस्य युगीन सभ्यता कहा जाता है.
सिंधु घाटी सभ्यता की नगर विन्यास पद्धति 'Grid System ' पर आधारित थी.
सिंधु सभ्यता के नगरों की गलियां चौड़ी व सीधी हुआ करती थी तथा एक दूसरे को समकोण पर काटती थी.
अधिकतर हड़प्पा वासी अपने घरों को दो मंजिल के बनाते थे.
इन घरों के प्रमुख दरवाजे बाहर सड़क की तरफ खुलते थे.
भारत में वास्तुकला का आरंभ सिंधु वासियों ने ही किया था.
सिंधु सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत का नाम अन्नागार है जो मोहनजोदड़ो की खुदाई से मिली.
मोहनजोदड़ो की खुदाई से एक विशाल स्नानघर भी मिला है.
सिंधु सभ्यता वासियों के घरों के फर्श आमतौर पर कच्चे होते थे सिर्फ कालीबंगा से कुछ पक्के फर्श के साक्ष्य मिले हैं.
विश्व में सर्वप्रथम कपास की खेती करने का श्रेय सिंधु वासियों को ही जाता है.
सिंधु सभ्यता वासी चावल और बाजरा की खेती करना भी जानते थे चावल और बाजरा के साक्ष्य लोथल से मिले हैं
लोथल एक ऐसा स्थान था जो सिंधु सभ्यता वासियों का प्रमुख बंदरगाह था.
बनावली से मिले हल के प्रमाण के आधार पर कहा जा सकता है कि यह लोग हल चलाना भी जानते थे.
कालीबंगा की खुदाई में जूते हुए खेत के प्रमाण भी मिले हैं.
सिंधु वासी हाथी और घोड़े से परिचित थे परंतु उन्हें फालतू नहीं बना सके.
सुरकोटदा की खुदाई से घोड़े के होने के प्रमाण मिले हैं.
चन्हुदड़ो की खुदाई में एक ईंट पर बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के पंजों के निशान भी मिले है.
सिंधु वासियों को गैंडा,बंदर, भालू, आदि जंगली जानवरों का ज्ञान था परंतु जंगल के राजा शेर को नहीं जानते थे .
सिंधु सभ्यता के समय मुद्रा प्रणाली का प्रचलन नहीं था.
यह लोग क्रय विक्रय वस्तु विनिमय आधार पर व्यापार किया करते थे.
सिंधु सभ्यता के लोग अन्य सभ्यता के लोगों के साथ भी व्यापार करते थे.
सिंधु सभ्यता के लोग तांबा, चांदी, सोना, शीशा, आदि का व्यापार करते थे यह लोग अफगानिस्तान, ईरान, दक्षिण भारत, तक व्यापार किया करते थे.
हड़प्पा की खुदाई से मिले साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है यह सभ्यता व्यापारी एवं शिल्पियों के हाथों में थी.
सन 1999 तक सिंधु सभ्यता के 1056 नगरों की खोज हो चुकी थी.1056 नगरों की खोज के कारण ही इस सभ्यता को नगरीय सभ्यता कहां गया.
सिंधु वासी अपने आभूषणों में सोना, चांदी, तांबा, धातु का प्रयोग करते थे साथ ही यह लोग कीमती पत्थर से बने आभूषणों को भी बहुत चाव से पहनते थे.
सिंधु सभ्यता के लोग मंदिर नहीं बनाते थे ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि अब तक की खुदाई से एक भी मंदिर के प्रमाण नहीं मिले हैं.
हड़प्पा वासी मुख्य रूप से कूबड़ सांड की पूजा करते थे.
हड़प्पावासी वृक्षों की पूजा भी करते थे खुदाई से मिले पीपल एवं बबूल के पेड़ों के साक्ष्यों के आधार पर ऐसा कहा जा सकता है.
सिंधु वासी स्वास्तिक चिन्ह बनाना जानते थे मोहनजोदड़ो की खुदाई से एक मोहर पर स्वास्तिक चिन्ह के निशान मिले है.
सिंधु सभ्यता की लिपि भाव चित्रात्मक थी.
सिंधु लिपि को पढ़ने का सर्व प्रथम प्रयास L A vadel ने किया था.
सिंधु सभ्यता की लिपि को अब तक समझा नहीं जा सका है.
सिंधु वासी लिखते समय चिड़िया, मछली,मानवकृति आदि का प्रयोग किया करते थे. सिंधु लिपि दाएं से बाएं लिखी जाती थी
सिंधु सभ्यता को ProHistoric युग का माना गया है.
सिंधु सभ्यता के मुख्य निवासी द्रविड़ और भूमध्यसागरीय थे
सिंधु सभ्यता के सर्वाधिक स्थल गुजरात में खोजे गए हैं.
सिंधु सभ्यता वासियों ने मनके बनाने के लिए कारखाने लगा रखे थे.
कारखानों के साक्ष्य लोथल और चन्हुदडो से प्राप्त हुए है
सिंधु सभ्यता की मुख्य फसलें गेहूं और जो थी.
सिंधु सभ्यता वासी तौल की इकाई में 16 का अनुपात रखते थे.
सिंधु सभ्यता के लोग धरती की पूजा करते थे ऐसा माना जाता है सिन्धुवासी अपने खेतों की ऊर्वरक शक्ति बढ़ाने के लिए धरतीमाता की पूजा करते थे.
सिंधु सभ्यता वासी मातृदेवी की भी पूजा करते थे.
सिंधु सभ्यता मातृ प्रधान सभ्यता थी.
कहा जाता है पर्दाप्रथा सिंधु सभ्यता में प्रचलित थी.
क्षेत्रफल की दृष्टि से मोहनजोदड़ो सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा नगर था.
हड़प्पाकालीन स्थलों की खुदाई से मिले प्रमुख साक्ष्य के आधार पर कहा जा सकता है हड़प्पा वासी कुशल कारीगरी करना जानते थे.
हड़प्पा नगर की खोज 1921 में दयाराम साहनी द्वारा की गई थी.
हड़प्पा की खुदाई से कुछ महत्वपूर्ण चीजें प्राप्त हुई हैं जैसे शंख का बना हुआ बैल, नटराज की आकृति वाली मूर्ति, पैर में सांप दबाए गरुड़ का चित्र ,मछुआरे का चित्र, आदि
मोहनजोदड़ो की खोज 1922 में राम लद्दाख बनर्जी द्वारा की गई थी
मोहनजोदड़ो की खुदाई से भी कुछ महत्वपूर्ण चीजे मिले हैं. जैसे पक्की ईट ,कांसे की एक नर्तकी की मूर्ति, सीडी आदि के साक्ष्य मिले हैं.
मोहनजोदड़ो को मृतकों का टीला भी कहा जाता है.
सिंधु सभ्यता के प्रमुख नगर लोथल से भी महत्वपूर्ण साक्ष्य मिले हैं लोथल से बत्तख, बारहसिंघा, गोरिल्ला, दो मुंह वाले राक्षस के अंकन वाली मुद्राएं प्राप्त हुई है.
सिंधु सभ्यता का एक प्रमुख नगर कालीबंगा है जो घाघर नदी के किनारे राजस्थान में स्थित है.
कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ 'काली चूड़ियां' है
कालीबंगा से विकसित हड़प्पा सभ्यता के साक्ष्य मिले.
जूते हुए खेत, सरसों के साक्ष्य से भी कालीबंगा से ही प्राप्त हुए हैं एक सींग वाले देवता के साक्ष्य भी कालीबंगा से मिले है .
सिंधु सभ्यता में मानव के साथ कुत्ते को दफनाने की प्रथा भी प्रचलित थी ऐसी ही एक प्रथा के साक्ष्य रोपड़ से प्राप्त हुए हैं.
हरियाणा के बनावली से हल की आकृति वाला खिलौना प्राप्त हुआ है अच्छे किस्म की जो भी यही से प्राप्त हुई है.
सिंधुवासी खेलो में भी रूचि रखते थे.
सिंधुवासी सतरंज का खेल जानते थे.
सिंधु सभ्यता को 'सिंधु सरस्वती' सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है ऐसा इसलिए कहा जाता है क्युकी सरस्वती नदी के किनारे भी इस सभ्यता के साक्ष्य मिले हैं.
प्रथम बार काँसे के प्रयोग के कारण इस सभ्यता को कांस्य युगीन सभ्यता कहा जाता है.
सिंधु सभ्यता वासियों का प्रमुख व्यवसाय कृषि पर आधारित था.यह लोग जो, बाजरा ,चावल, कपास आदि की खेती करते थे
हड़प्पा में पकी मिट्टी की स्त्री मूर्तिकाएं भारी संख्या में मिली हैं। एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से निकलता एक पौधा दिखाया गया है। विद्वानों के अनुसार यह पृथ्वी देवी की प्रतिमा है.
अब तक ज्ञात खुदाई में मात्र 3 प्रतिशत हड़प्पा सभ्यता को ही खोजा गया है.
लोथल से युगल शवाधान का साक्ष्य मिला है साक्ष्य के आधार पर कहा जा सकता है हिंदू सभ्यता में सती प्रथा का प्रचलन था.
सिंधु सभ्यता में भक्तिवाद ,पुनर्जन्म आदि के साक्ष्य भी मिले हैं.
हड़प्पा नगर वासियों के अधिकतर घर पक्की ईंटों के बने होते थे.
सिंधु सभ्यता में फलों की खेती बहुत कम मात्रा में होती थी.
बनावली से मिले बैलगाड़ी के खिलौने के साक्ष्य के आधार पर कहा जा सकता है कि यह लोग खेती के लिए बैलगाड़ी का प्रयोग करते थे.
हड़प्पा संस्कृति प्रगति का मुख्य कारण वहा के लोगो का आत्मनिर्भर होना था.
सूत्रों के अनुसार हड़प्पा घाटी के अधिकांश लोगो का जीवन समृद्ध था। हड़प्पा में संसाधनों के एकत्रीकरण की व्यवस्था ही संस्कृति के विकास का कारण बनी.
इस सभ्यता की समकालीन सभ्यता मेसोपोटामिया थी.
हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में असंख्य देवियों की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। ये मूर्तियां मातृदेवी या प्रकृति देवी की हैं.
यहां हुई खुदाई से पता चला है कि हिन्दू धर्म की प्राचीनकाल में कैसी स्थिति थी
सिन्धु घाटी की सभ्यता को दुनिया की सबसे रहस्यमयी सभ्यता माना जाता है, क्योंकि इसके पतन के कारणों का अभी तक खुलासा नहीं हुआ है.
चार्ल्स मेसन ने वर्ष 1842 में पहली बार हड़प्पा सभ्यता को खोजा था। इसके बाद दया राम साहनी ने 1921 में हड़प्पा की आधिकारिक खोज की थी.
हड़प्पा से कई ऐसी चीजें मिली हैं, जिन्हें हिन्दू धर्म से जोड़ा जा सकता है। पुरोहित की एक मूर्ति, बैल, नंदी, मातृदेवी, बैलगाड़ी और शिवलिंग आदि हिंदू धर्म के प्रतीक है.
1940 में खुदाई के दौरान पुरातात्विक विभाग के एमएस वत्स को एक शिव लिंग मिला जो लगभग 5000 पुराना है.
मोहनजोदड़ो को सिंध का बाग़ भी कहा जाता है.
ऐसा माना जाता है मोहनजोदड़ो की स्थापना आज से 4616 वर्ष पूर्व हुई थी.
इतिहासकारों के अनुसार हड़प्पा सभ्यता के निर्माता द्रविड़ लोग थे.
इतिहाकारों के अनुसार सबसे पहली बार कपास उपजाने का श्रेय हड़प्पावासियों को ही दिया जाता है.
हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त मोहरो को सर्वोत्तम कलाकृतियों का दर्जा प्राप्त है.
हड़प्पा वासी मिटी के बर्तनो पर लाल रंग का प्रयोग करते थे.
मोहनजोदड़ों से प्राप्त विशाल स्नानागार में जल के रिसाव को रोकने के लिए ईंटों के ऊपर जिप्सम के गारे के ऊपर चारकोल की परत चढ़ाई गई थी जिससे पता चलता है कि वे चारकोल के संबंध में भी जानते थे.
पुरातात्विक विभाग के सर्वे के अनुसार हड़प्पा काल के अंतिम समय में हड़प्पा घाटी के लोग कयी बीमारियों से जूझ रहे थे.
अंतिम समय में सिन्धुवासी मुख्य रूप से कार्नियो-फेसिअल मानसिक आघात नामक बीमारी से ग्रसित थे, यह बीमारी तेज़ी से फेल रही थी.
कहा जाता है की हड़प्पा घाटी के लोग आर्थिक रूप से समृद्ध होने के बावजूद भी स्वस्थ नहीं रहते थे.
1500 ईसा पूर्व के आसपास सिंधु सभ्यता का पतन हो गया
1947 में पाकिस्तान बनने के बाद सिंधु सभ्यता के दो प्रमुख नगर मोहनजोदड़ो और हड़प्पा पाकिस्तान का हिस्सा बन गए.
भारत में सिंधु सभ्यता का प्रमुख स्थल धोलावीरा है