एक बार संता जंगल में जा रहा था|अचानक भालू देखकर सांस रोककर जमीन पर लेट गयाये देखकर भालू आया और उसके कान में बोला...साले भूख नहीं है वरना कहानी तो बचपन में मैंने भी सुनी है..
संस्कारों से बड़ी कोई वसीयत नहीं होती
और ईमानदारी से बड़ी कोई विरासत नहीं होती
संता – आज मैंने पानी को बुद्धू बना दिया
पानी गर्म किया,
पानी ने सोचा होगा कि अब मैं नहाऊंगा
लेकिन मैं नहाया ही नहीं
बंता – अरे मैंने तो आज पूरे परिवार
को ही बुद्धू बना दिया
बाथरूम में नहाने के लिए गया और
बस कपड़े बदल कर बाहर आ गया
दिल्ली वाले पति ने लिखी शायरी
अर्ज किया है
क्या करें कहां जाएं,
यह तो जिंदगी भर का
रोना
है
घर में बैठी है शेरनी, बाहर कोरोना है
न सोचा मैंने आगे,
क्या होगा मेरा हशर,
तुझसे बिछड़ने का था,
मातम जैसा मंज़र!