वह खुली किताब थीऔर मैं अनपढ़..
ये मुहब्बत कब, किससे हो जाये इसका अंदाजा नहीं होता
ये वो घर है जिसका कोई दरवाजा नहीं होता
खैरात में मिली ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती ग़ालिब,मैं अपने दुखों में रहता हु नवावो की तरह...
Kya pata uski zuban se bhi izhar nikle,
Kya pata unke dil me bhi pyar nikle,
Sach hai uske bina ji nahi sakte hum,
Kya pata uske dil se bhi yahi baat nikle.
ना गिला है कोई हालात से,ना शिकायते है किसी की बात से,खुद ही सारे जुदा हुए,मेरी जिंदगी की किताब से..