कुछ यूँ उतर गए हो मेरी रग-रग में तुम,कि खुद से पहले एहसास तुम्हारा होता है।
कुछ लम्हे और उसका साथ चाहता था,
आँखों में थमी वो बरसात चाहता था !!
जानता हु बहुत चाहती थी वो,
मगर उसकी जुबान से 1 बार इज़हार चाहता था...!!
ये मेरा दिवानापन है,या मोहब्बात का सुरूर....!तू ना पहचाने तो है ये तेरी नाजरों का कुसूर....!!बसने लगी आँखों में कुछ ऐसे सपने...कोई बुलाये जैसे नैनों से अपने...!!!
खुद नहीं जानते कितनी प्यारे हो आप,
जान हो हमारी पर जान से प्यारे हो आप,
दूरियों के होने से कोई फर्क नही पड़ता,
कल भी हमारे थे और आज भी हमारे हो आप।