उसने मिलने की अजीब शर्त रखी… गालिब चल के आओ सूखे पत्तों पे लेकिन कोई आहट न हो!
उड़ने दे इन परिंदों को आज़ाद फिजां में ‘गालिब’जो तेरे अपने होंगे वो लौट आएँगे
चेहरे अजनबी हो जाये तो कोई बात नही
लेकिन रवैये अजनबी हो
जाये तो बडी तकलीफ देते हैं
Hum toh fanaah ho gaye uski ankhen dekh kar Ghalib,Na jane woh Aaina kaise dekhte honge.
हाथो की लकीरों पे मत जा ए ग़ालिब,नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते|