तुमसे ही रूठ कर तुम्ही को याद करते हैं
हमे तो ठीक से नाराज़ होना भी नही आता
एडमिन ने ढाबा खोला..ग्राहक – मेरी चाय मै मक्खी डूब कर मरी पड़ी है |एडमिन –तो क्या करू?मै ढाबा चलाऊ या इन्हे तैरना सीखाऊँ |
इक उम्र तक मैं जिसकी जरुरत बना रहा
फिर यूँ हुआ कि उस की जरुरत बदल गई।
Ho Jaun Itna Madhosh Tere Pyar Mai
Ke Hosh Bhi Aane Ki Ijaazat Maange..
इंसान हर घर में जन्म लेता है
लेकिन इंसानियत कहीं कहीं ही जन्म लेती है