काश तकदीर भी होती किसी जुल्फ की तरह…
जब जब बिखरती संवार लेते…
Vo samjhta hai ki har shakhs badal jata hai…..
Ussey lagta hai zamana us ke jaisa hai….
Diye Hain Zindagi Ne Zaḳhm Aise;Ki Jin Ka Waqt Bhi Marham Nahin Hai!
आँखों में मंज़िलें थी
गिरे और सँभालते रहे..
आँधियों में क्या दम था
चिराग हवा में भी जलते रहे…
पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैंज़मीं जहाँ भी खुले घर निकलने लगते हैं
मैं खोलता हूँ सदफ़ मोतियों के चक्कर मेंमगर यहाँ भी समन्दर निकलने लगते हैं