क्या बेचकर हम खरीदे
फुर्सत ऐ जिंदगी,
सब कुछ तो गिरवी पड़ा है
जिम्मेदारी के बाजार में..!!
वर्षों से दहलीज़ पर कड़ी वो मुस्कान है,
जो हमारे कानो में धीरे से कहती है,
“सब अच्छा होगा”
जिनका कद ऊँचा होता है
वो दूसरों से झुक कर ही बात करते हैं
मुक्तसर सी ज़िन्दगी है मेरी तेरे साथ जीना चाहता हूँ,कुछ नहीं मांगता खुदा से बस तुझे मांगता हूँ.
पापा को अपने आज क्या उपहार दू,
तोहफे दे फूलों के या गुलाबों का हार दू,
हमारी जिंदगी में जो है सबसे प्यारे,
उन पर तो अपनी जिंदगी ही वार दू।