उसी का शहर, वही मुद्दई, वही मुंसिफ
हमीं यकीन था, हमारा कुसूर निकलेगा
यकीन न आये तो एक बार पूछ कर देखो
जो हंस रहा है वोह ज़ख्मों से चूर निकलेगा
दांतों को आराम देकर देखिए आपका स्वास्थ्य सुधर जाएगा
जिव्हा पर विराम लगा कर देखिए आपका क्लेश का कारवाँ गुज़र जाएगा
ḳhud apne aap se lenā thā intiqām mujhemaiñ apne haath ke patthar se sañgsār huā
जब हम गलत होते हैं,
तो समझौता चाहते हैं
और दूसरे गलत होते हैं...तो
हम न्याय चाहते हैं।
भूल होना प्रकृति है,
मान लेना संस्कृति है,
और सुधार लेना प्रगति है।
सुप्रभात
हम आज भी शतरंज़ का खेलअकेले ही खेलते हे ,क्युकी दोस्तों के खिलाफ चालचलना हमे आता नही ..।