दर्द, गम, डर जो भी है बस तेरे अंदर है
खुद के बनाये पिंजरे से बाहर निकल,तू
भी एक सिकंदर है
मेरी इबादतों को ऐसे कर कबूल ऐ मेरे खुदा,
के सजदे में मैं झुकूं तो मुझसे जुड़े हर रिश्ते की जिंदगी संवर जाए..!!
कदम डग मगा गये युही रास्ते से
वरना सम्भलना हम भी जानते थे,
ठोकर लगी तोभी उस पत्थर से
जिसे हम अपना खुदा मानते थे।।
तेरी साँसों में बिखर जाऊं तो अच्छा है,
बन के रूह तेरे जिस्म मे उतार जाऊं तो अच्छा है,
किसी रात तेरी गोद में सर रख कर सो जाऊं,
उस रात की कभी सुबह ना हो तो अच्छा है
उसने मोहब्बत, मोहब्बत से ज़्यादा की थी,
हमने मोहब्बत उस से भी ज़्यादा की थी,
वो किसे कहेंगे मोहब्बत की इन्तहा,
हमने शुरुआत ही इन्तहा से ज़्यादा की थी.