पांवों के लड़खड़ाने पे तो सबकी है नज़र,
सर पे कितना बोझ है कोई देखता नहीं।
ख़ुशियों की ख़ातिर हमने कितने क़र्ज़ उतार रक्खे हैं
ज़िंदगी फिर भी तूने हमपे कितने दर्द उतार रक्खे हैं
मासूम अगर होता तो सब मिलके लूट लेते
जाने किस अपने ने मेरे दुश्मन उतार रक्खे हैं
Aa Bhi Jaao Meri Aankhon Ke Rubaru Ab Tum,
Kitna Khwabon Mein Tujhe Aur Talasha Jaye.
वक़्त नूर को बेनूर बना देता है, छोटे से जख्म को नासूर बना देता है,
कौन चाहता है अपनों से दूर रहना पर वक़्त सबको मजबूर बना देता है.
नींद सोती रहती है हमारे बिस्तर पे,और हम टहलते रहते हैं तेरी यादों में।