Is qadarr tora hai mujhe uss ke bewafayi ne "ghalib"
Ab koi agar pyar se bhi dekhahai to bikhar jata hoon main.
ये चाँद सा रोशन चेहरा, जुल्फों का रंग सुनहरा ये झील सी नीली आँखे, कोई राज है इन में गहरा तारीफ़ करूँ क्या उसकी, जिसने तुम्हें बनाया
चलती हुई “कहानियों” के जवाब तो बहुत है मेरे पास ….लेकिन खत्म हुए “किस्सों” की खामोशी ही बेहतर है.
खैरात में मिली ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती ग़ालिब,मैं अपने दुखों में रहता हु नवावो की तरह...