मैंने कब कहा तू मुझे गुलाब दे...
या फिर अपनी मोहब्बत से नवाज़ दे...
आज बहुत उदास है मन मेरा.....
गैर बनके ही सही तू बस मुझे आवाज़ दे...!!
Ye mout bi badi ajeeb chiz hei yaro…
Sala Ek Din Marne ke liye Puri Zindgi Jini padTi hey…
उसने मोहब्बत, मोहब्बत से ज़्यादा की थी,
हमने मोहब्बत उस से भी ज़्यादा की थी,
वो किसे कहेंगे मोहब्बत की इन्तहा,
हमने शुरुआत ही इन्तहा से ज़्यादा की थी.
आज हम भी एक नेक काम कर आए,
दिल की वसीयत किसी के नाम कर आए,
प्यार हैं उनसे ये जानते हैं वो……,
मज़बूरी थी जो झुकी नज़रों से इनकार कर आए
इत्तेफाक से तो नहीं,
हम दोनों टकराये
कुछ तो साजिश
खुदा की भी होगी