याद आते है वो स्याही से रंगें हाथ,
क्या दिन थे वो जब करते थे लंच दोस्तों के साथ.
Hum toh fanaah ho gaye uski ankhen dekh kar Ghalib,Na jane woh Aaina kaise dekhte honge.
ये वक़्त बेवक़्त मेरे ख्यालों
में आने की आदत छोड़ दो तुम,
कसूर तुम्हारा होता है और
लोग मुझे आवारा समझते हैं
Kitna pyar karte hai hum unse,
Kaash unko bhi yeh ehsaas ho jaye,
Magar aisa na ho ke woh hosh mein tab aaye,
Jab hum gehri neend mein so jaye…
उठा लो दुपट्टे को ज़मीन से कहीं दाग़ न लग जाए,
पर्दे में रखो चेहरे को कहीं आग न लग जाए।