कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते
किसी की आँख में रह कर सँवर गए होते |
न जाने किस तरह का इश्क कर रहे हैं हम,
जिसके हो नहीं सकते उसी के हो रहे हैं हम।
Palkon Ki Hadd Ko Tod Kar Daaman Pe Aa Giraa,
Ek Ashq Mere Sabar Ki Toheen Kar Gayaa.
इंसानी जिस्म में सैंकड़ों हैवान देखे हैं,
मैंने दिल में रंजिश रख महफ़िल में आये मेहमान देखे हैं|”
दूर हो जाने की तलब है तो शौक से जा…
बस याद रहे की मुड़ कर देखने की आदत इधर भी नही…