एक दो तीन चार
गणपति की जय जय कार,
पांच छे सात आठ
गणपति है सबके साथ।
तू बन जा मेरी कि इस कदर चाहूंगा तुझे
कि लोग दुआ करेंगे तुझसा नसीब पाने के लिए
हर बात में आंसू बहाया नहीं करते,दिल की बात हर किसी को बताया नहीं करते,लोग मुट्ठी में नमक लेके घूमते है..दिल के जख्म हर किसी को दिखाया नहीं करते।
लिखूं कुछ आज यह वक़्त का तक़ाज़ा है,
मेरे दिल का दर्द अभी ताज़ा ताज़ा है,
गिर पड़ते हैं मेरे आँसू मेरे ही काग़ज़ पर
लगता है कलम में स्याही का दर्द ज़्यादा है!!
इस तरह मिली वो मुझे सालों के बाद,
जैसे हक़ीक़त मिली हो ख़यालों के बाद,
मैं पूछता रहा उस से ख़तायें अपनी,
वो बहुत रोई मेरे सवालों के बाद!!