बैठे-बिठाए हाल-ए-दिल-ज़ार खुल गया
मैं आज उसके सामने बैठकर बेकार खुल गया। -मुनव्वर राणा
एक उमर बीत चली है तुझे चाहते हुए,
तू आज भी बेखबर है कल की तरह..!
Bade hi chupke se bheja tha,Mere mehbub ne muje ek gulab,Kambhakht uski khusbu ne ,Sare shehar me hungama kar diya
न जाने क्या मासूमियत है तेरे चेहरे पर …..
तेरे सामने आने से ज़्यादा तुझे छुपकर
देखना अच्छा लगता है …!!!
मेरी बर्बादी पर तू कोई मलाल ना करना,भूल जाना मेरा ख्याल ना करना,हम तेरी ख़ुशी के लिए कफ़न ओढ़ लेंगे,पर तुम मेरी लाश ले कोई सवाल मत करना!