Sard mausam ka maza kitna alag sa hai,
Tanha raat mein intazaar kitna alag sa hain,
Dhund bani naqab, aur chupa lia sitaron ko,
Unki tanhaai ka ab ehsas kitna alag sa hai.
किसी भी मुशकिल का अब किसी को हल नही मिलता ,
शायद अब घर से कोई माँ के पैर छूकर नही निकलता
अरमान ही बरसो तक जला करते है हमेशा ,
इंसान तो इक पल मे खाक हो जाता है !!
कोई वादा ना कर, कोई ईरादा ना कर!
ख्वाईशो मे खुद को आधा ना कर!
ये देगी उतना ही, जितना लिख दिया खुदा ने!
इस तकदीर से उम्मीद ज़्यादा ना कर!
तुम शराफ़त को बाज़ार में क्यूँ ले आए हो…
दोस्त
ये सिक्का तो बरसों से नहीं चलता…!!