वैसे हम रहते तो है सिंपल टाइप,
पर जब हम मूड में होते है,
तो सुलतान भी सलूट ठोकता है.
रोज़ इक ताज़ा शेऱ कहां तक लिखूं तेरे लिए,
तुझमें तो रोज़ ही एक नयी बात हुआ करती है…
अब तो शायद ही मुझसे मुहब्बत करेगा कोई
तेरी तस्वीर जो मेरी आखों में साफ़ नजर आती है
आपकी यादें भी हैं, मेरे बचपन के खिलौनो जैसी ..
तन्हा होते हैं तो इन्हें ले कर बैठ जाते हैं…!
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुम ने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा