क्या कहूँ तुम से मैं कि क्या है इश्क़
जान का रोग है बला है इश्क़
उसने मोहब्बत, मोहब्बत से ज़्यादा की थी,
हमने मोहब्बत उस से भी ज़्यादा की थी,
वो किसे कहेंगे मोहब्बत की इन्तहा,
हमने शुरुआत ही इन्तहा से ज़्यादा की थी.
वक़्त को भी हुआ है ज़रूर किसी से इश्क़,जो वो बेचैन है इतना कि ठहरता ही नहीं।
ये सर्द शामें भी किस कदर ज़ालिम है,बहुत सर्द होती है, मगर इनमें दिल सुलगता है।
Aap Jab Tak Rahenge Aankho Mein Najara Bankar,
Roj Aayenge Meri Duniya Mein Ujala Bankar.