इश्क की गहराईयों में खूबसूरत क्या है
मैं हूँ, तुम हो और कुछ की ज़रुरत क्या है
कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलोबहुत बड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो
तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता हैमैं जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो
फिर वही फ़साना अफ़साना सुनाती हो
दिल के पास हूँ कह कर दिल जलती हो
बेक़रार है आतिश इ नज़र से मिलने को
तो फिर क्यों नहीं प्यार जताती हो…!!
हम तस्लीम करते हैं,
हमें फुर्सत नहीं मिलती,
मगर ये भी ज़रा सोचो,
तुम्हें जब याद करते हैं,
ज़माना भूल जाते हैं|
यूं तो तेरी महफिल में हमे चाहने वालो की कमी नहीं,पर हम तुझे चाहने में कोई खता करें ये भी तो हमें गवारा नही।