*अपनी आंखों को* *जगा दिया हमने**सुबह का फर्ज अपना* *निभा दिया हमने**मत* *सोचना कि बस* *यूं ही तंग किया हमने**उठकर* *सुबह भगवान के साथ**आपको भी याद किया हमने**सुप्रभात*
शायर तो हम
“दिल” से है….
कमबख्त “दिमाग” ने
व्यापारी बना दिया.
Taras gaye apke deedar ko,
phir bhi dil aap hi ko yaad karta hai,
humse khusnaseeb to apke ghar ka aaina hai,
jo har roz apke husn ka deedar karta hai…
एहसान करो तो दुआओ में मेरी मौत मांगना
अब जी भर गया है जिंदगी से !
एक छोटे से सवाल पर
इतनी ख़ामोशी क्यों ….?
बस इतना ही तो पूछा था-
“कभी वफ़ा की किसी से…
इकरार में शब्दों की एहमियत नही होती,
दिल के जज़बात की आवाज़ नही होती,
आँखें बयान कर देती हैं दिल की दास्तान,
मोहब्बत लफज़ो की मोहताज़ नही होती!