इकरार करने में शब्दों का होना लाज्मी नहीं
दिल के जज्बात ही काफी हैं
आंखें बयान कर देती हैं दिल की दास्तान,
मोहब्बत लफ्जों की मोहताज़ नही होती
मैं तमाम दिन का थका हुआ,
तू तमाम शब का जगा हुआ,
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर,
तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ।
हम तस्लीम करते हैं,
हमें फुर्सत नहीं मिलती,
मगर ये भी ज़रा सोचो,
तुम्हें जब याद करते हैं,
ज़माना भूल जाते हैं|
तुम्हे हक है अपनी जिन्दगी जैसे चाहे जीयो तुम,
ज़रा एक पल के लिये सोचना मेरी ज़िन्दगी हो तुम….॥
इतने हसीं चेहरे को देख कर चाँद भी सरमा गया,
आया मेरे पास और चुपके से फार्मा गया,
की जा रहा हु मैं छुपाने को अपनी ये खूबसूरती,
क्यों की मुझ से भी हसीन कोई आया और इस जहां पर छा गया