मैं तो वैरागी हूं,ना सम्मान ना मोह,ना अपमान ना भय,ना शत्रु, ना कोई मित्र,ना कोई अपना ना परायाना ईश संसार से कोई लेना ना देनापर कभी धर्म के नाम पे किये जाने वालाआडम्बर पक्षपात का आधार बनेगा तोमें उसका विनाश अवश्य ही करूँगा..
अहंकार” और “संस्कार” में फ़र्क़ है…
“अहंकार” दूसरों को झुकाकर कर खुश होता है,
“संस्कार” स्वयं झुककर खुश होता है..!
संस्कारों से बड़ी कोई वसीयत नहीं होती
और ईमानदारी से बड़ी कोई विरासत नहीं होती
बारिश के मौसम में गाड़ियों से थोड़ा दूरी बनाकर चलें,पता नहीं कब गाड़ी तीव्र गति से आये और आपके कपड़ों पर मार्डन आर्ट बनाकर चली जाये!
जब भक्ति भोजन में मिलती है, तो प्रसाद बन जाता है,
जब पानी में मिलती है, तो चरणामृत बन जाता है,
जब घर में मिलती है, तो मंदिर बन जाता है,
जब व्यक्ति में मिल जाता, तो वह भक्त बन जाता है।