डर तो इंसान का वहम है,
जो उसे यूँ ही लग जाता।
तब तक है लगता रहता,
जब तक इंसान सहमता रहता.
भले ही किसी गैर की जागीर थी वो,
पर मेरे ख्वाबों की भी तस्वीर थी वो,
मुझे मिलती तो कैसे मिलती,
किसी और के हिस्से की तक़दीर थी वो
हमारे हर सवाल का सिर्फ एक ही जवाब आया,
पैगाम जो पहूँचा हम तक बेवफा इल्जाम आया।
वो शायद मतलब से मिलते हैं,
मुझे तो मिलने से मतलब है.!
बात दिन की नहीं, अब रात से डर लगता है
घर है कच्चा मेरा बरसात से डर लगता है
प्यार को छोड़ कर तुम और कोई बात करो
अब मुझे प्यार की हर बात से डर लगता है