कुछ लुटकर, कुछ लूटाकर लौट आया हूँ,
वफ़ा की उम्मीद में धोखा खाकर लौट आया हूँ |
अब तुम याद भी आओगी, फिर भी न पाओगी,
हसते लबों से ऐसे सारे ग़म छुपाकर लौट आया हूँ |
तैरना तो आता था हमें मुहब्बत के समंदर में
लेकिन जब उसने हाथ ही ना पकड़ा तो डूब जाना ही अच्छा था
एक रोस उनके लिएजो मिलते नही रोज़-रोज़,मगर याद आते है हर रोज़ |
वक़्त को भी हुआ है ज़रूर किसी से इश्क़,जो वो बेचैन है इतना कि ठहरता ही नहीं।