प्यार हमेशा हद में रहकर किया जाए,
समय बर्बाद होता है अगर बेहद हो जाए
दो मुलाकात क्या हुई हमारी तुम्हारी,निगरानी में सारा शहर लग गया।
अब ये हसरत है कि सीने से लगाकर तुझकोइस क़दर रोऊँ की आंसू आ जाये
भरोसा क्या करना गैरों पर,जब गिरना और चलना है अपने ही पैरों पर।
इश्क का होना भी लाजमी है शायरी के लिये..कलम लिखती तो दफ्तर का बाबू भी ग़ालिब होता।