किसी को काँटों से चोट पहुंची
किसी को फूलों ने मार डाला
जो इस मुसीबत से बच गए थे
उन्हें उसूलों ने मार डाला
तू वाकिफ़ नहीं मेरी दीवानगी से…
जिद्द पर आऊँ तो..ख़ुदा भी ढूंढ लूँ …
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
जाड़े की रुत है नई तन पर नीली शाल
तेरे साथ अच्छी लगी सर्दी अब के साल...
उसने पूछा सबसे ज्यादा क्या पसंद है तुम्हे
मैं बहुत देर तक देखता रहा उसे
बस ये सोचकर कि
खुद जवाब होकर उसने सवाल क्यूँ किया…!!