यहां तो लोग अपनी गलती नहीं मानतेफिर किसी को अपना कैसे मानेंगे
यहां तो लोग अपनी गलती नहीं मानते
फिर किसी को अपना कैसे मानेंगे
जिन फूलों को संवारा था
हमने अपनी मोहब्बत से,
हुए खुशबू के काबिल तो
बस गैरों के लिए महके।
उसी का शहर, वही मुद्दई, वही मुंसिफ
हमीं यकीन था, हमारा कुसूर निकलेगा
यकीन न आये तो एक बार पूछ कर देखो
जो हंस रहा है वोह ज़ख्मों से चूर निकलेगा
Sadiya Guzar Gayi Kisi Ko Apna Bnane Me...
Magar Pal Bhi Na Laga Unhe Hamse Door Jane Me...
Chahat hai kisi chahat ko pane ki,
chahat hai chahat ko aazmane ki,.
Wo chahe hume chahe na chahe par
chahat hai unki chahat me mit jane ki.