“वो तो अच्छा हुआ मुझे फर्क पड़ना बंद हो गया,वरना बेचारा बद्दुआओं का सबक लेते लेते थक जाता…”
“वो तो अच्छा हुआ मुझे फर्क पड़ना बंद हो गया,
वरना बेचारा बद्दुआओं का सबक लेते लेते थक जाता…”
खुद की पर्वा किए बिना दिन रात अन्न उपजाता है, सलाम है इस धरती माँ के पुत्र को जिसके कारण हमारा जीवन मुस्काता है।
छत टपकती हैं, .. उसके कच्चे घर की……
फिर भी वो किसान करता हैं दुआ बारिश की..
मदद करना सीखिये
फायदे के बगैर
मिलना जुलना सीखिये
मतलब के बगैर
जिन्दगी जीना सीखिये
दिखावे के बगैर
और
मुस्कुराना सीखिये
सेल्फी के बगैर!
यकीन और दुआ नज़र नहीं आते मगर,
नामुमकिन को मुमकिन बना देते हैं।
Kitnaa khouf hota hai shaam ke andheroo mein,
Poonch un parindoo se jin ke ghar nahi hote.