अब शामे खत्म तुमसे,अब सुबह शुरू तुमसे ,बचे निशा के कुछ पल,उसमे नींद भी तुमसे,सोयी आँखों के सपने भी तुमसे l
जब भी करीब आता हूँ बताने के लिये,जिंदगी दूर रखती हैं सताने के लिये,महफ़िलों की शान न समझना मुझे,मैं तो अक्सर हँसता हूँ गम छुपाने के लिये।
चलो फ़िर से हौले से मुस्कुराते हैं,बिना माचिस के ही लोगों को जलाते हैं।
तुमसे ही रूठ कर तुम्ही को याद करते हैं
हमे तो ठीक से नाराज़ होना भी नही आता
Tu hasi chand kisi aur ka sahi
Par tu mere andhere ki roshni he…