है पेट की आग कुछ ऐसी ,दो रोटी से कहाँ बुझा पाता हूँ lघुमता हूँ दर-दर कुछ इस तरहअपने घर पर मेहमान हो जाता हूँ l
स्टाइल तो सिर्फ शौक के
लिए है, वरना लोगो के
लिए मेरी नशीली आँखों
के इशारे ही काफी है!!
नाज़ुकी उसके लब की क्या कहिये,
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है
हर बात में आंसू बहाया नहीं करते,दिल की बात हर किसी को बताया नहीं करते,लोग मुट्ठी में नमक लेके घूमते है..दिल के जख्म हर किसी को दिखाया नहीं करते।
एक रोस उनके लिएजो मिलते नही रोज़-रोज़,मगर याद आते है हर रोज़ |