क्यूँ शर्मिंदा करते हो रोज, हाल हमारा पूँछ कर..
हाल हमारा वही है, जो तुमने बना रखा है..
खो गयी है मंजिले, मिट गए है सारे रस्ते,
सिर्फ गर्दिशे ही गर्दिशे, अब है मेरे वास्ते.
काश उसे चाहने का अरमान न होता,
मैं होश में रहते हुए अनजान न होता
न प्यार होता किसी पत्थर दिल से हमको,
या फिर कोई पत्थर दिल इंसान न होता.
तुम्हारी प्यारी सी नज़र अगर इधर नहीं होती,नशे में चूर फ़िज़ा इस कदर नहीं होती,तुम्हारे आने तलक हम को होश रहता है,फिर उसके बाद हमें कुछ ख़बर नहीं होती.
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफिर ने समंदर नहीं देखा
पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उसने मुझे छू कर नहीं देखा