चलो आज इस जमीं को फिर से जन्नत बनाते हैं,
रोज न सही आज दो चार पौधे लगाते हैं।
पर्यावरण दिवस की शुभकामनाएं
न हो तो रोती हैं जिदे, ख्वाहिशों का ढेर होता हैं,
पिता हैं तो हमेशा बच्चो का दिल शेर होता हैं.
अमर वही इंसान होते हैं
जो दुनियां को कुछ देकर जाते हैं
बडी लम्बी खामोशी से गुजरा हूँ मै,किसी से कुछ कहने की कोशिश मे।
खुद की पर्वा किए बिना दिन रात अन्न उपजाता है, सलाम है इस धरती माँ के पुत्र को जिसके कारण हमारा जीवन मुस्काता है।
छत टपकती हैं, .. उसके कच्चे घर की……
फिर भी वो किसान करता हैं दुआ बारिश की..