हम स्वार्थ की ज़मीन पर नफरतों का बीज बो रहे हैं।झूठी शान और लालच में हम रिश्तों को खो रहे हैं।।
हुआ सवेरा तो हम उनके नाम तक भूल गए
जो बुझ गए रात में चरागों की लौ बढ़ाते हुए।