“तजुर्बा बता रहा हूँ दोस्तदर्द,ग़म,डर जो भी है बस तेरे अंदर हैखुद के बनाए पिंजरे से निकल के देखतू भी एक सिकंदर है”
शत्रु को सदैव भ्रम में रखना चाहिए ।
जो उसका अप्रिय करना चाहते हो तो उसके साथ सदा मधुर व्यवहार करो
उसके साथ मीठा बोलो । शिकारी जब हिरण का शिकार करता है
तो मधुर गीत गाकर उसे रिझाता है, और जब वह निकट आ जाता है,
तब वह उसे पकड लेता है
जिसकी नीति अच्छी होगी,
उसकी हमेशा उन्नत होगी,
“मैं श्रेष्ट हूँ”… यह आत्मविश्वास है,
लेकिन
“सिर्फ मैं ही श्रेष्ट हूँ”…यह अहंकार है।
ज्ञानी इंसान कभी घमण्ड नहीं करता
और जिसे घमंड होता है ज्ञान उससे कोसों दूर रहता है
जब भक्ति भोजन में मिलती है, तो प्रसाद बन जाता है,
जब पानी में मिलती है, तो चरणामृत बन जाता है,
जब घर में मिलती है, तो मंदिर बन जाता है,
जब व्यक्ति में मिल जाता, तो वह भक्त बन जाता है।