दोपहर, शाम के इंतज़ार में गुजर जाती है,
शाम, ना जाने कब आके चली जाती है,
तुम भी कोई शाम सी लगती हो मुझे,
इंतज़ार में जिसके दिन गुजरते है जिसके l
जिस जिसका मैं हुआ नहीं
उसकी जिंदगी सवर गयी
मैं राह देखता रहा जाने किसकी
और इन्ही राहों पे ये जिंदगी गुजर गयी
टूटे हुए दिल भी धड़कते है उम्र भर,चाहे किसी की याद में या फिर किसी फ़रियाद में।
उनके दीदार के लिए दिल तड़पता है;उनके इंतज़ार में दिल तरसता है;क्या कहें इस कमबख्त दिल को अब;अपना होकर भी जो किसी और के लिए धड़कता है।
देखकर मेरी आँखें एक फकीर कहने लगा,
पलकें तुम्हारी नाज़ुक है,
खवाबों का वज़न कम कीजिये...!