तमाशा करती है मेरी जिंदगी,गजब ये है कि तालियां अपने बजाते हैं!
देखो, आहिस्ता चलो, और भी आहिस्ता ज़रादेखना, सोच-सँभल कर ज़रा पाँव रखना,ज़ोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं.काँच के ख़्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में,ख़्वाब टूटे न कोई, जाग न जाये देखो,जाग जायेगा कोई ख़्वाब तो मर जाएगा
सिसक कर पूछती हैमुझसे ये तनहाईय़ाजो बड़े हमदर्द थे तेरेआखिर वो बेबफाई कैसे कर गये.
सिसक कर पूछती है
मुझसे ये तनहाईय़ा
जो बड़े हमदर्द थे तेरे
आखिर वो बेबफाई कैसे कर गये.
एक याद से हैं आप ।
ये कला आपकी है ।
ख्यालों की ड्योढ़ी पर आ कर
चौखट पर हर्फ़ खिसका
अपनी जगह बना लेते हैं ।
कुछ लिहाज़
जो आप से जुड़े हैं ।
कुछ लिहाफ़
जो मैंने बुने हैं ।
मेरी कलम आपकी ही तलबगार है
ज़िंदगी 'गुलज़ार' है ।।
“इल्म तो मिलता रहेगा बाद में भी मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल और महके हुए रुक़्के किताबें मांगने, गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे उनका क्या होगा?”