बचपन के दिन भी कितने अच्छे होते थे,
तब दिल नहीं सिर्फ खिलौने टूटा करते थे,
अब तो एक आंसू भी बर्दाश्त नहीं होता
और बचपन में जी भरकर रोया करते थे।
वो बचपन भी क्या दिन थे मेरे..! न फ़िक्र कोई..न दर्द कोई..!! बस खेलो, खाओ, सो जाओ..! बस इसके सिवा कुछ याद नहीं..!
एक बचपन का जमाना था, जिस में खुशियों का खजाना था. चाहत चाँद को पाने की थी, पर दिल तितली का दिवाना था..
बचपन की कहानी याद नहीं..! बातें वो पुरानी याद नहीं..!! माँ के आँचल का इल्म तो है..! पर वो नींद रूहानी याद नहीं..!!
भीगी हुयी जिंदगी की यही कहानी है,
कुछ बचपन से नालायक था, बाकी आप सबकी मेहरबानी है.