चाहे अन्दर तक टूट जाय
या एक मुठी मे सीमट जाय
तम्हारी चाहत मे तुमसे निभा
भी लेंगे और तुम्हें तुमसे चुरा
भी लेंगे ।
खुद की पर्वा किए बिना दिन रात अन्न उपजाता है, सलाम है इस धरती माँ के पुत्र को जिसके कारण हमारा जीवन मुस्काता है।
छत टपकती हैं, .. उसके कच्चे घर की……
फिर भी वो किसान करता हैं दुआ बारिश की..
ये सिलसिला क्या यूँ ही चलता रहेगा,
सियासत अपनी चालों से कब तक किसान को छलता रहेगा.
चाहत तुम्हारी - रविवार की तरहहकीकत जिंदगी - सोमवार की तरह...!!
Humne to khud se inteqam lia ,
Tumne kya soch kar humse mohabbat ki?