चाहे अन्दर तक टूट जाय
या एक मुठी मे सीमट जाय
तम्हारी चाहत मे तुमसे निभा
भी लेंगे और तुम्हें तुमसे चुरा
भी लेंगे ।
परिश्रम की मिशाल हैं, जिस पर कर्जो के निशान हैं,
घर चलाने में खुद को मिटा दिया, और कोई नही वह किसान हैं
ये सिलसिला क्या यूँ ही चलता रहेगा,
सियासत अपनी चालों से कब तक किसान को छलता रहेगा.
घमंड ही नहीं गुरुर है अपने किसान होने का।
बढ़ रही हैं कीमते अनाज की,
पर हो न सकी विदा बेटी किसान की
Humne to khud se inteqam lia ,
Tumne kya soch kar humse mohabbat ki?