विकल्प बहुत मिलेंगे,
मार्ग भटकाने के लिए
संकल्प एक ही रखना,
मंजिल तक जाने के लिए।
परिश्रम की मिशाल हैं, जिस पर कर्जो के निशान हैं,
घर चलाने में खुद को मिटा दिया, और कोई नही वह किसान हैं
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए,
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए|
“लोग क्या कहेंगे”- ये बात इंसान को आगे नहीं बढ़ने देती
क्यों मरते हो यारो सनम के लिए,ना देगी दुप्पटा कफ़न के लिए,मरना है तो मारो वतन के लिए,तिरंगा तो मिलेगा कफ़न के लिए.