तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी कामयाब न हो सकीं,
तिरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई!
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुम ने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा