आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक।
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक।।
तुम मुझे कभी दिल, कभी आँखों से पुकारो ग़ालिब,
ये होठो का तकलुफ्फ़ तो ज़माने के लिए है|
इश्क का होना भी लाजमी है शायरी के लिये..कलम लिखती तो दफ्तर का बाबू भी ग़ालिब होता।
Kisi Aashiq Ne Kya Khub Kaha Hai,Khamoshi Ko Ikhtiyaar Kar Lena,Apne Dil Ko Bekarar Kar Lena,Zindagi Ka Asli Dard Lena Ho To..Kisi Se Bepanah Pyar Kar Lena…
Kisi Aashiq Ne Kya Khub Kaha Hai,
Khamoshi Ko Ikhtiyaar Kar Lena,
Apne Dil Ko Bekarar Kar Lena,
Zindagi Ka Asli Dard Lena Ho To..
Kisi Se Bepanah Pyar Kar Lena…
खैरात में मिली ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती ग़ालिब,मैं अपने दुखों में रहता हु नवावो की तरह...