अपनी जान के लिए |
अपने जान को जान से जुदा कर दिया |
मोहबत कुछ इस कदर किया |
सांस चल रही है हम ने जीना छोड़ दिया |
“तारीख हज़ार साल में बस इतनी सी बदली है,…
तब दौर पत्थर का था अब लोग पत्थर के हैं”….
ये सर्द शामें भी किस कदर ज़ालिम है,बहुत सर्द होती है, मगर इनमें दिल सुलगता है।
उठाये जो हाथ उन्हें मांगने के लिए,
किस्मत ने कहा, अपनी औकात में रहो।
अब ये हसरत है कि सीने से लगाकर तुझकोइस क़दर रोऊँ की आंसू आ जाये