“तुमने समझा ही नहीं और ना समझना चाहा,
हम चाहते ही क्या थे तुमसे “तुम्हारे शिवा।”
गुज़र गया वो वक़्त जब तेरे तलबगार थे हम.
अब खुद भी बन जाओ तो सजदा न करेंगे..!
कितने आंसू बहूँगा उस बेवफा के लिए
जिसको खुदा ने मेरे नसीब मैं लिखा ही नहीं….
कौन कहता है मुझे ठेस का एहसास नहीं,
जिंदगी एक उदासी है जो तुम पास नहीं,
मांग कर मैं न पियूं तो यह मेरी खुद्दारी है,
इसका मतलब यह तो नहीं है कि मुझे प्यास नहीं.
बेवफाई उसकी दिल से मिटा के आया हूँ,
ख़त भी उसके पानी में बहा के आया हूँ,
कोई पढ़ न ले उस बेवफा की यादों को,
इसलिए पानी में भी आग लगा कर आया हूँ
हर बात में आंसू बहाया नहीं करते,दिल की बात हर किसी को बताया नहीं करते,लोग मुट्ठी में नमक लेके घूमते है..दिल के जख्म हर किसी को दिखाया नहीं करते।