“क्यूँ नहीं महसूस होती उसे मेरी तकलीफ,
जो कहते थे बहुत अच्छे से जानते है तुझे।”
मेरे-तेरे इश्क़ की छाँव में… जल-जलकर!
काला ना पड़ जाऊ कहीं !
तू मुझे हुस्न की धुप का
एक टुकड़ा दे…!
शायर तो हम
“दिल” से है….
कमबख्त “दिमाग” ने
व्यापारी बना दिया.
Main Jo Chahu To Tod Du Naata Tumse
Par Mein Buzdil Hu
Maut Se Darr Lagta Hai …
ज़ुल्म इतना ना कर के लोग कहे तुझे दुश्मन मेरा…!!
हमने ज़माने को तुझे अपनी “ जान ” बता रक्खा है…!!