हमें पता है तुम कहीं और के मुसाफिर हो,
हमारा शहर तो बस यूँ ही रास्ते में आया था !
खैरात में मिली ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती ग़ालिब,मैं अपने दुखों में रहता हु नवावो की तरह...
हाथो की लकीरों पे मत जा ए ग़ालिब,नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते|
उड़ने दे इन परिंदों को आज़ाद फिजां में ‘गालिब’जो तेरे अपने होंगे वो लौट आएँगे
Hum toh fanaah ho gaye uski ankhen dekh kar Ghalib,Na jane woh Aaina kaise dekhte honge.