काश कोई होता हमारा भी जो गले से लगा कर पूछता,
क्यों इतने उदास रहते हो आज कल।
मतलब की दुनिया थी इसलिए छोड़ दिया सबसे मिलना,
वरना ये छोटी सी उम्र तन्हाई के काबिल नही थी।
कौन याद रखता हैं गुजरे हुए वक़्त के साथी कोलोग तो दो दिन में नाम तक भुला देते हैं |
काश यह जालिम जुदाई न होती!
ऐ खुदा तूने यह चीज़ बनायीं न होती! न
हम उनसे मिलते न प्यार होता!
ज़िन्दगी जो अपनी थी वो परायी न होती!
हमे बेवफा बोलने वाले
आज तू भी सुनले,
जिनकी फितरत ‘बेवफा’
होती है,
उनके साथ कब ‘वफा’ होती है!!