अपना साया भी अज़नबी सा लगे,
जब उम्र किसी की तन्हाई में कटे!
हमे बेवफा बोलने वाले
आज तू भी सुनले,
जिनकी फितरत ‘बेवफा’
होती है,
उनके साथ कब ‘वफा’ होती है!!
ये किस तरह की ज़िद दिल मुझ से करने लगा, जिसे मैंने भूलना चाहा उसे वो याद करने लगा .
मंजिल का नाराज होना भी जायज था… हम भी तो अजनबी राहों से दिल लगा बैठे थे…!
हमको तो बस तलाश नए रास्तों की है, हम हैं मुसाफ़िर ऐसे जो मंज़िल से आए हैं...